सूरज सूं होड री

घमसाण में

पळपळांवतो दिवळो

कद समझी है

किणी फिड़कलै री प्रीत

बो तो राखी है सदाई

जीत में नीत

जीत हां जीत

जिकी मिली हो भलांई

किणी रै बळणे सूं

कै

किणी रै छळणै सूं

प्रीत तो निछरावळ रो

बीजो नांव है

पण

निरमोही नै

कोयी निछारवळ

कद करा सक्यो

आपरी प्रीत रो अेसास

बठै तो

अेंकार बढ़ावै

भभको उठावै

हिरदो कद पिघळावै

अर कद बुझावै

किणी रै

अंतस लाग्योड़ी लाय

ईं वास्ते म्हारा बीर!

जे किणी रै अंतस नै

झिंझोड़णो है तो

तूफान बणनो पड़ैला

तूफान नीं तो

आंधी बणो

आंधी नीं तो

बगूळ बणो

हिंसा कै अहिंसा

किणी तरीकै सूं

जूंझो, भिड़ो कै लड़ो

पण

राकस नै रिझावण तांईं

आत्मदाही मत बणो।

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार सप्तक ,
  • सिरजक : भंवर कसाना ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै