चालौ चालां

जठै अेकांत अपांरौ व्है

वगत अपांरौ व्है

अंतरिख अपांरौ व्है

उडां मनचींत्या विराट सून्य में।

चालौ चालां

आंतरै आंतरै,

इण धरती

इण आभै सूं आंतरै।

चालौ चालां

काया सूं आंतरै

माया सूं आंतरै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कैलाश कबीर ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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