दिखै च्यारां कानी लाय लगावणा,

भाई रो भाई हुवै खावणों।

काळिया नाग बण'र डंक लगावणा,

र‌ह्यो कोनी अबै मिनखपणों॥

सगळा मिनख करै है खेंचातांणी,

व्हैग्यो रै अबै आंख्यां रो पांणी।

बातड़ी आछी तरै सूं जाणी॥

कोनी जाणैं प्रीत रीत निभावणी,

मतळब री चावै है डोर बांधणी।

म्हारी सुणले अबै बातड़ी॥

बेटो पटकै मां बाप माथै जोर,

भाया हुयो कळजुग में के सोर।

भाया किंया हुवैली चमकती भोर॥

कठै गई कांण कायदै री बातां,

आंख्यां आगै आयगी अबै रातां।

अब चोखी बातां रै मारै लातां॥

सासू-सुसरै नैं तानां सुणावै,

बेटा मां-बाप नैं दोस देवै।

कळजुग आंख्यां खोल बात कैवै॥

गरीब नैं रोटी नीं सेकण देवै,

मजदूरां री कमाई लूट लेवै।

भाया लूंठा है अगरबत्ती खेवै॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : संदीप 'निर्भय' ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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