राधा! रमणौ छोड दै .

कुंजगळियां सांकड़ी हूगी

जठै विखधर फण फुफकारै

तौ केई बैठा कुंडळ मार

निकळ सकै तौ बच निकळ

कद डस लै इणरी खबर नहीं।

राधा! रमणौ छोड दो .

कदंब री वे डाळ कांटाळी हूगी

कानन वन में काना कम

कंस काटकता फिरै

कद भख ले लेवै

किणनै खबर नहीं।

राधा! रमणौ छोड दो

जमुना तट पर ताटी तणगी

बंधण बंधग्या काळकूटां रा

जळ में जहर पसरग्यौ

गोरौ तन कद काळौ पड़जा

थनै खुद नै खबर नहीं।

राधा! रमणौ छोड दै!!

स्रोत
  • सिरजक : भंवरलाल सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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