पुरु बैठ्यो ऊँचै आसण पर,
भरियो दरबार महीधर रो।
मुजरो कर दूत खड़ो सामो,
मोटै समराठ सिकन्दर रो॥
बोल्यो राजेस्वर महाराज,
यूनानी दळ स्यूँ आयो हूँ।
संदेसो है मिन्तरतारो,
संधी रो कागद ल्यायो हूँ॥
यूनान धणी कैवायो है,
जहलम रै पार उतरणो है।
हमलै नै मारग मांगां हाँ,
म्हानै भारत सर करणो है॥
ओ हात दोसती वाळो है,
जे बिना लड़्याँ मारग देवो॥
सोनै स्यूँ, हीरै मोती स्यूँ
पुरुराज खजानो भर लेवो॥
जे मान राखद्यो थे म्हाँरो,
म्हे थानै मान घणो देस्याँ।
जिण दिन भारत नै जीताँला,
थानै ऊँचो आदर देस्याँ॥
पण जे थे मारग रोकण नै,
खेताँ में सामाँ आवोला।
यूनानी लसकर मोटो है,
रेतां भेळा रळ ज्यावोला॥
नयीं होणी जीत लड़ाई में,
आ बात घणी बध ज्याबैली।
राजा रजवाड़ों मिट ज्यासी,
थाँरी रैयत दुख पावैली॥
म्हारी रैयत रो फिकर दूत,
पुरु बोल्यो म्हानै करणो है।
दुषमण री ताबैदारी में,
जीणै स्यूँ आछो मरणो है॥
भारत रा पोळ रुखाळा हाँ,
म्हाँस्यूँ है आस बड़ी भारी।
लानत है म्हाँरी जामण नै,
जे कराँ मुलक स्यूँ गद्दारी॥
तूँ घूँट जैर रो लायो है,
ओ आवै नयीं पीवणै में।
भू माँ रा द्रोही बण जीवाँ,
तो धूड़ है इसै जीवणै में॥
कह दीजै दूत सिकन्दर नै,
पुरु जूझण सामो आवैलो।
जे म्हाँरी सीवां डाकैलो,
लोथां ऊपर स्यूँ जावैलो॥
बो अँभीराज जको कायर,
बैर्याँ रा पग सहलावणीयों।
पोरस रै खड़्ग हात में है,
मरदा रो मोल बतावणीयों॥
जे आज मींचलूँ हूँ आँख्याँ,
यूनानी घर में बड़ ज्यावै।
कट ज्यावै नाक मुलक वाळी,
जद माथा काम कठै आवै।
धरती तो सिर री बाजी है,
का देणो है का लेणो है।
ओ इतरो ही संदेस दूत,
यूनान धणी नै कैणो है॥
मुजरो कर दूत मुड्यो पाछो,
गण में रण री तुरियाँ बजगी।
हाथ्याँ री रथाँ पैदलाँ री,
पोरस वाळी सैना सजगी॥
राजा सम्बोधन कर बोल्यो,
बखतर कसियोड़ै बीराँ स्यूँ।
भारत रो भाल सजाणो है,
लोयी री लाल लकीराँ स्यूँ॥
दळ मोटो है ग्रीकां वाळो,
दळ तो आयो है अण गण नै।
ओ आयो सहा सिकन्दर है,
आँपणलो पाणी परखण नै॥
जे आज़ पड़ैलो पग पाछो,
भारत नै भूँड घणी आसी।
माथाँ रो फिकर कराँला तो,
मुखड़ाँ री आब उतर ज्यासी॥
जीवण रो लालच करस्याँ तो,
मूड़दाँ में गिणती होवैली।
वीराँ आ धरती लाजै तो,
आपांनै पीढ्या रोवैली॥
घर बैठाँ बैरी ललकारै,
जे कायर ज्यूँ दब ज्यावांला।
ऊँचो माथो कर दुनियाँ नै,
अै मूँढा कियां दिखावाँला॥
मावाँ बहना री लाज आज,
जुग-जुग री लाज बडैराँ री।
लूँटण नै भूमि भारत री,
तरवाराँ तणगी बैर्याँ री॥
जे आज प्राण रो मोह करै,
कायर कोई जीणो चावै।
काळो मूंढो कर मुड़ज्यावै,
सैना में सागै नयीं आवे॥
खाँडाँ री लाज जकाँ नै है
रण लपटाँ रा है परवाना।
बै कूँच करै म्हाँरे सागै,
है आजादी रा दीवाना॥
पुरु वाला पोरष भर्या बीर,
जद कूँच कियो रथ हाथ्याँ पर।
यूनानी लसकर आ पूगो,
जहलम नद रै इण पार उतर॥
खाँडा स्यूँ खाँडा टकराया,
बै गळा मिल्या तरवाराँ स्यूँ।
नद वाळो पाणी लाल हुयो,
तातै लोही री धाराँ स्यूँ॥
भुरजाळा बीर भिड़ै हा जद,
कड़कै हा, जाड़ाँ पीसै हा।
राता रगताँ में न्हायोड़ा,
बै काळ सरीसा दीसै हा
खटकाँ में माथा उछळ रया,
लोथाँ पर लोथाँ आवै ही।
छोटी सी सैना जूझै ही,
लाखाँ स्यूँ लोह बजावैं ही॥
रण मातो, सिंघ जियाँ गरजै,
पोरस रो रूप भयंकर हो।
ओ प्रलय मचावण आज खड़्यो,
विकराळ रूप सिव संकर हो॥
देख्यां भारत रा बीराँ नै,
देखी बै तरवाराँ कड़की।
धरती रा अजै सूरवाँ री,
यूनान्याँ री छात्याँ धड़की॥
सैना रै पती सिल्यूकस रा,
उड गया होस आया झोबा।
भिड़ताँ ही होग्या भरम जिस्या,
भारत जीतण रा मनसोबा॥
बै लाल बिखरिया धरणी पर,
बळीदान भारती पर होग्या।
बैर्याँ रो मान मिठावणीयाँ,
खाँडां रा धणी खेत सोग्या॥
पुरुराज एकलो अड़्यो इस्यो,
झट्का कर दिया हजाराँ रा।
अण गिण्याँ फवारा छूटै हा,
चोगड़दै राती धाराँ रा॥
देख्यो ओ बीर अनोखो ही,
आँख्याँ फाठी यूनान्याँ री।
अेकलड़ै धरणा धिसका दी,
धर जीतणीयें अभिमान्याँ री॥
जद घायल सिंध पड़्यो रण में,
यूनान्याँ सोरो साँस लियो।
मुसकाँ कसताँ बैरी बोल्या,
वहा-वहा रै जबरो जँग कियो॥
समराट सिकन्दर रै सामै,
सैनिक पोरस नै जद लाया।
उण समर सूर नै देखण नै,
यूनानी बीर उमड़ आया॥
पुरुराज अड़्यो है तूँ अहड़ो,
हूँ आखी ऊमर नयीं बिसरूँ।
समराठ कयो अब तूयीं बता,
तैंस्यूँ कहड़ो व्यवहार करूँ?
पोरष बोल्यो यूनान धणी,
मत समझी थारो चाकर हूँ।
तूं राजा है, हूँ राजा हूँ,
हार्यो हूँ तोई बराबर हूँ॥
तूँ म्हानै लूँटण आयो है,
म्हे अड़ाँ सामनै दोष कियाँ?
बरताव तनै करणो होसी,
राजा हूँ राजा करै जियाँ॥
अभिमान घणो मत कर राजा,
आ छोटी सैना हारी है।
भारत में भूप घणा मोटा,
थारै दळ स्यूँ दळ भारी है॥
बै मालव नाग जोधिया जद,
अड़ ज्यासी हिंयाँ हला देसी।
बाँ खाँडाँ रो पाणी अडड़ो,
ग्रिकाँ रो गरभ गळा देसी॥
जद नंद जिस्या समराटाँ स्यूँ,
यूनान धणी टकरावै लो॥
ओ दळ धरती पर बिछ ज्यासी,
कोयी पाछो नहीं आवैलो॥
कर लेवै सारो जगत जेर,
बो खाँडो अजै बण्यों कोनी।
भारत नै भुजबळ स्यूँ तोलै,
माई बो लाल जण्यों कोनी॥
आ बात खरी है, कही तोल,
मरणै स्यूँ राव डरूं कोनी।
झुक ज्याउँ थारै चरणा पर,
तो के मैं कदै मरूं कोनी?
मरणो तो अटल जीव रो है,
इण धरा जकोई आवै है।
करमाँ री खेती निपजै है,
इतिहास बोलतो जावै है॥
जद मिटै देस पर बीर सदा,
तो सोच किसो पुरु आज मरै,
है सोच झुकाँ थारै आगै,
भारत री धरती लाज मरै॥
यूनान धणी बोल्यो पोरस,
तूँ नहीं है चीज मिटाणै री।
ग्रिकाँ रै हिंवड़ै में छपगी,
बा स्यान है तूँ हिन्दवाणै री॥
हूँ आधी धरती मथ दीनी,
पण देखी अहड़ी आण नहीं।
मारूं में कैदी, बीर इस्यो,
आ यूनान्याँ री स्यान नहीं॥
बँधीयोड़ै नै मरवाद्यूं तो,
आ करणी होवै कीराँ री।
इतिहास कवै, कोनी जाणै हो-
-कदर सिकन्दर बीराँ री॥
सूरापो हूँ मेटूं कुँकर,
सूरापै पर समराट टिकै।
सूराँ री कदर गमावणीयाँ,
कोड्याँ मूगा धर धणी बिके॥
तूँ बैठ बराबर आ म्हारै,
ओ ऊँचो आसण थारो है।
जित्यो तूँ आज वीरता में,
ओ आज सिकन्दर हार्यो है॥
महाराज पुरु नयीं अजर अमर,
समराट सिकन्दर मिट ज्यासी।
इतिहास अमिट रह ज्यावैलो,
बीराँ रा गुण धरती गासी॥
बोल्यो समराट सिल्यूकस नै,
तूँ लिखदे रोजनामचै पर।
भारत में देख्या जिस्या वीर,
मैं नयीं देख्या धरती ऊपर॥