परभात, हरमेस परभात

सौरम री बुआरी सूं बुआरै

बगत रा घणां सारा पानका।

लाम्बी पूंछ आळी गिलारी

जद चौकी माथै

चिड़ी साथै

पैली चा पीवै।

म्हारी गळी-गुवाड़

गांव खेत रा सगळा रूंखां नै

पतझड़नाई ऐक भच्चाकै कतर दिया

देख तावड़ै रो आरसी भी मुळकै आजकाळे

आं नूंआं रंगरूटां नै देख-देख।

पुहुपां री, सौरम री रुत

जद थांरी उडीकरी हद तांई लाम्बी बधै

सै'तूत सी आल्ली, कंवळी खट-मीठी।

भाई, खळां में पूगै मोट्यार कणकरी सौरम

थारै पुराणैं कुड़तै माथै जमी बूफण-स्याळ

मेहणत री मदभरी नींद

इण बगत रो फुटरापो घड़ै।

उतरतै फागण री कळयां पूछै

पुहुपां सूं भर्या मारग कठै जावै।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : पृथ्वी परिहार ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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