अेक दिन
मुलक रा सीधा-सादा लोग
गैर राजनीतिक बुद्धिजीवियां सूं
करैला जिरह अर
पूछैला थांनै
कांई कर रैया हा थे
जद मुलक होळै-होळै
डूबतो जाय रैयो हो।
मुलक में थांनै कोई तो
पूछैला अेक दिन
कै भीष्म दांई
स्सो क्यूं जाणतां थकां
थे भरी दुपारी
क्यूं सूत्या रैया
खूंटी ताण?
कोई नीं विस्वास करैला
थां माथै कै बै
समाज में सिरमौर
हुवतां थकां भी
हासियै में क्यूं रैया।