धूजता हाथ

मून लेखनी

कोनी उपजै,

बै हेत रा भाव

लिखारां रै,

हिड़दै मांय।

जमग्यो

हैज रो समंदर...

डबका खांवतो रुळै,

मिनखाचारो।

बस दीसै,

आंख्यां मांय,

रागसपणो,

काढै सैल,

कड़ूम्बो...

ल्हूखगी,

प्रसंगी आळी सौरम,

जियां दिनुगै,

तारां री तरावट,

हूवै भैळी

चांदणी री चौधर,

बस बिंया ही

काटै रांद,

हिड़दै रै उजास

अर

गेरै अपणेस री,

बैरी गरब...

च्यार पीसां रो।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मीनाक्षी पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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