क्यूं आज हूं कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

सूख गयौ सुख रौ सागर, मन मछली मर जावैला।

मूरत मैली मोंद सूं, मन मिन्दर रै मांय।

पूजारी बण प्रेम रौ, सपनौ दियौ संजोय।

गीत प्रीत रा गाय नै, देवी आयौं दरबार।

अमरु अरपण आपनै हैज पैरायौ हार।

पण जाणतौ नी प्रेम प्यालौ, जैर सूं भर जावैला।

क्यूं आज हूं कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

दीवौ करियौ देह रौ, अर प्रेम तणौ परगास।

सैं कुछ देने लैवणौ म्हें राखी कौनी आस।

बण बाती बळ जावणौ दरद नी जाणूं दैह।

परवा नी परसाद री, मन मुळकंतौ मैह।

इतरा करतौ आपनै अमरेस, कदें नी आवैला।

क्यूं आज हूं कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

पाप लागौ इण पूजा रौ, आंच सांच नै आई है।

कऊं धुकती काळजै इण, अंग में आग लगाई है।

सुरगा सपनौं टूट गयौ, नरक नसीबां नैड़ौ है।

घायल हूं म्हैं घिरियौड़ौ, ज्यूं माखीमंद रौ खेड़ी है।

निरदोषी हूँ न्याव मांगू, तोल ताकड़ी कुण देवैला।

क्यूं आज हूं कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

मैळौ अठै मौकळौ, पण ऊभौ हूं म्है अेकलौ।

अंग में आग लगाय आत्मा, अळगी ऊभी देखलौ।

आज कठै उजाळौ भटकूं, अंधारौ है आंधी में।

घणीं तपी है, कींज कौनी, खौट खराबी चांदी में।

काया कळपी तप सूं तड़की, कद भाटौ दिल पिघळावैला।

क्यूं आज हूँ कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

और नहीं बस इणरै आगे, अेक जीवती लास हूं

पंछी पड़ियौ पीजरै अर, गळे अटकियौ सांस हूं।

काळ कोठरी पंख पछाडू, लथपथ लौही झांण है।

उडण कौनी आसरौ, अंग लागा अलैखौ बांण है।

घाव देंख कुण घबरावै, ऊपर लूण लगावैला।

क्यूं आज हूं कैद दुनिया, दोष म्हारौ दिखावैला।

स्रोत
  • पोथी : इन्दर नै ओळभौ ,
  • सिरजक : अमर सिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : रुचिर प्रकाशन
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