गत-प्रभा थियउ ससि रयणि गळंती,

वर मंदा सइ-वदन वरि।

दीपक परजळतउ-इ दीपइ;

नास फरिम सूरतन नरि॥

मेली तदि साध्र सु रमण कोक मनि,

रमण कोक मनि साध्र रही।

फूले छंडी वास प्रफूले,

ग्रहणे सीतळताइ ग्रही॥

धुनि उठी अनाहत संख-भेरि-धुनि,

अरुणोदय थिय जोग-अभ्यास।

माया पटळ निसा-मय भंजे,

प्राणायामे जोति-प्रकास॥

संजोगिणि-चीर, रई, कैरव-स्त्री,

घर हट-ताळ, भमर गउ-घोख।

दिणयरि ऊगि एतळां दीधउ,

मोखियां बंध, बंधियां मोख॥

वाणिजू-वधू, गउ-वाछ, असइ-विट,

चोर, चकव, विप्र-तीरथवेळ।

सूरि प्रगटि एतळां समपियउ,

मिळियां विरह, विरहियां मेळ॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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