सुवाल सोच्यो नीं जावै,

सुवाल कर्यो नीं जावै

सुवाल पूछ्यो नीं जावै,

बिना पूछ्योड़ो

बिना करियोड़ो

अर बिना सोच्योड़ो सुवाल

सह्यो नीं जावै

झुलसीजै मिनख,

कळपीजै काया,

आंतड़ियां बिचाळै

उळझ ज्यावै

सुवालां रा डोरा

कदै कदै सुवाल कठेई नीं व्है,

अर पड़्तर देवण नै जीव ऊमगै,

(आरोप सूं पैली सफाई देवण री तरज में)

कुत्तो गळी में

सुवाल भूंकरियो है,

मोची जूते में

सुवाल ठोक रियो है

अर बंगलै रो दरबान

भीतर घुसता'ईं सुवाल ई'ज ठोके

सुवाल की सकल

रीतै पड्यै भांडै जैड़ी व्है

सुवाल जुद्ध व्है

अर पडूतर सांतिवारता

सुवाल नीं है के

थे पडूत्तर दिया के नी

सुवाल तो है के—

सुवाल क्यूं व्हियौ?

बियां कांई फरक पड़ै

रेत आंख्यां में हुवो

चाये तीन बीघा खेत में

रेत तो रेत हुवै!

स्रोत
  • सिरजक : कृष्ण कल्पित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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