नैणां झरतो गीढ़

होंंठा पर फेफी

रोगली-सी काया

मूंदी पड़ी

टूट्योड़ी मांची पर

रात‐दिन भूखी रोवै

चूल्हे राख जोवै

लूआं रा लपरका

ठंड रा ठरका

स्सौ कीं स्हेवै

फेरूं

नीं जीवे

नीं मरे कविता म्हारी।

स्रोत
  • सिरजक : संदीप निर्भय ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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