(अशोक वाजपेयी रो काव्य-पाठ सुण्या पछै)

कर्फ्यू हो,

सौरम लापता।

बायरै गश्त ही

समकालीनता री।

आलोचना रा फौजी

लेवै हा घर-घर तलाशी।

नामीं नीं हो कवेसर

सूंप्यां पैली चौपड़ी-

सूंघ्यां सौरम नीं लागी उणमें जनरल साहब नै।

करिया कवेसर पर उपकार-

बगाय दीवी खिड़की सूं बारै!

बायरै सौरम रळगी,

नगर रै नासां पूग्या प्राण।

अजेस चालू है-

समकलीनता री पेट्रोलिंग तो!

स्रोत
  • पोथी : उतरयो है आभो ,
  • सिरजक : मालचंद तिवाड़ी ,
  • प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन बीकानेर
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