अेकर

ओज्यूं करै,

म्हारो

खोड़ियो चिंतण करै

ओजणा!

ढूंढ़ै

समाळ’र राखीजैड़ी

सौंधी सुगंध रै

सबदां री ठीकर्‌यां!

हिंवळास तणों हियो,

हबोळां भरतो हेत,

करै चेत।

अणहद नाद ज्यूं

बाजतो

कांसी-थाळ

अळापतो निनाद

हुंणकार रा नागड़ा नांव

कागद रै ओळ्यां री कूख

मंडेली

लीक-लीकोळ्यां

थरपीजैला

नांव, गांव अर ठांव!

खाई जैली

ओळखाणां रै ओळमै री अजवाण।

पण

इण चमगूंगै

चित्तरामां री

भींता रा

खिंडता लेवड़ा

भरम रै भाटां सा

टळक-टळक खिंडण लागै,

तो

रोवै, कळापै म्हारी

प्रसव री पीड़ा

अर

बिखर ज्यावै

औळ-नाळा

बणबा सूं पहली

टूट ज्यावै

बोदा सुपना।

दरवाजै रै

ओळ्यां-दौळ्यां

ऊभी

म्हारी

बैंसग्यां पड़ीजैड़ी भूख

कर न्हाखी

भ्रूण हित्या

ओजूं

अेक

सिरजक रै सिरजण री।

स्रोत
  • पोथी : पांगळी पीड़ रा दो आखर ,
  • सिरजक : एस.आर. टेलर ‘सुधाकर’ / श्याम सुन्दर टेलर ,
  • प्रकाशक : बिणजारी प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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