एक टुकड़ौ जमीन अर

हाथ में हळ

म्हनै किसान बणा सकै

पण म्हनै बणाणी है रोटी

कीं लौखंड रा टुकड़ा अर

हाथ में हथौड़ौ

म्हनै लोहार बणा सकै

पर म्हनै है बणाणी है रोटी।

एक टुकड़ौ कागद रौ अर

हाथ में कलम

म्हनै कांई ठाह कवि बणाय दे

पण म्हारी जिद है कै म्हैं रोटी बणाऊंला।

म्हारै कनै कीं नीं होणौ

म्हनै भूखौ तौ बणावै है

पण 'कीं नीं होवण' रै आडी भींत नीं बणावै!

उण माथै हाथ रौ नीं होवणौ

'हुनर रौ नीं होवणौ नीं है।

स्यात हुवै के

'हाथ जोड़ण' सूं मुक्ति मिळै

इण खातर म्हनै बणाणी है रोटी!

स्रोत
  • सिरजक : शैलेन्द्र सिंह नूंदड़ा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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