कोनी

कोरा निरथक

सबदां री भीड़ रो नांव

कविता।

भावां रा भतूळिया

देवै

गूंगा अरथ।

गुदमेली

बण ज्यावै

थूल बिम्बां स्यूं

भोळी आतमा

कविता री।

रूपाळी भासा रा

भेख, उफाण

कोनी कर सकै उजागर

इणरो लाखीणो सरूप।

जोगियां रै धूणां री

उकळतीसी भोभर रो नांव

कविता।

तपसी रै

तप रो ध्यान—

अजपा—जाप—सी

निकळंक साधना रो नांव

कविता।

जठै झणझणावै

अणहद रा ऊंडा सुर

आतमबोध पाण

कियां पूग सकै

सबदां रा अबळख घुड़ला

उण पार।

कियां रचीजै

सांतरी, सुथरी कविता।

जिनगाणी री

सौ टंच परख रो नांव

कविता।

जुगबोध रै फूलां रो

गजरो।

दरद री घाटी परां

दगदग

हेमजळ बरसातो झरणो।

मानखै री

अकूत चेतणा रो

मधरो सुर

कविता

जठै स्यूं दरसै

सांपड़तै

बिरम रै गेलै रो

आखरी पड़ाव।

स्रोत
  • पोथी : मुळकै माटी : गूँजै गीत ,
  • सिरजक : रामनिवास सोनी ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन (बीकानेर)
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