जिंया

सेठ हरचंदलाल री बैठक में

कांच रै अेक्वेरियम मांय

सजा राख्यो है सगळो समंदर

पाणी

मछल्यां

शंख

मूंघा पत्थर

आद-आद

बिंया

स्हैर रा मानीता कैई कविसरां

सजा राख्या है

आपरी कवितावां मांय

मायड़ रा कीं टाळवां-सबद

शो पीस बणा'र

पण

दोनूं चेस्टावां फगत

नेचुरल कठै है?

ना बो अेक्वेरियम समंदर है

ना बा कविता मायड़ भासा!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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