लूण-मिरच री पूड़ी कोनी कविता।

अटपटी लगी आपनै ओळी

पण कविता री घड़त पेटै म्हैं बात करूंला

जरूरी है लूण-मिरच रौ हिसाब

कवि करै आपरै हिसाब सूं हिसाब

बेहिसाब कोनी हुवै कोई कविता...

माफ करजौ किणी फरमाइस माथै म्हैं

नीं बणा सकूंला कोई कविता

बीरबल री खीचड़ी है कविता

थे घणी-घणी अळगी लगावौ आग

न्हाखौ कोई पूळौ अर लगावौ लांपौ

अठीनै कविता सीझ’र हुवै त्यार...।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
जुड़्योड़ा विसै