बीत गया दिन पिणघट रा,

यादां में रैगी पिणहार्‌यां।

गांव-गुवाड़ सूना हुयगा,

गीतां में गावै पिणहार्‌यां।

रंग-रंगीला ओढ़ ओढ़णा,

पेर्‌यां घेर-घूमेर घाघरिया।

माथै मोत्यां आळी ईंडूणी,

जिण माथै धरिया घड़ुल्या।

घड़ुल्या पर मेली गागरली,

चाल चालती नखराळी।

गज रो काढ्यो घूंघटो,

कमर लचकती बळखाती।

साथणियां रा होवता झूलरा,

मीठी-मीठी होवती बातड़ली।

घर बिध री भी बातां होवती,

सासू-नणदां री चुगलड़ी।

बालम जी री मीठी बातां,

या परदेसी रो संदेसो।

सारी बातां पिणघट होवती,

ना होवतो कोई अंदेसो।

अबै तो पिणघट ऊभा अेकला

करै करूण चित्कार।

पाछी आवो नींं पिणहार्‌यां,

पिणघट करै पुकार।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मान कँवर ’मैना’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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