मुट्ठी में

कस’र दाब्योड़ो

जीवण

छिणक में

सुरसुरा’र बण जावै रेत!

पानां री ओळ्यां में पळती प्रीत

जोड़नै पानै सूं पानो

हरियो करदै हेत!

फरक कांई?

देख! अेकै कानीं प्राण-विहूणा

दूजै कानीं महक।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : राजूराम बिजारणिया ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण