एक-

पुरखाँ को पुन्न छै

के आबा हाळी पीढ़ियाँ को सुख

जे चुळू में छै आज आपणै फाणी

ईं फाणी में ज्हैर मत घोळो

के इमरत बॅण ईं की ही दो बूँदां

बँधावैगी आस बैकुण्ठ पूगबा की

मनख जूण का छेकड़ल बगत में

दो-

फाणी के बेई कुण परायो

जे भी तसायो मनख चुळू में ले’र

ले जावै फाणी आपणां होठाँ तांई

फाणी बुझावैगो ऊँ की तस

फेर फाणी के बेई राड़ कीं लेखे?

धरणी अर आभै के तांई बाँटबा हाळो मनख

फाणी के ताँई भी बाँट लैगो-

यो कश्यो डमस छै?

कांई लट्ठ मार्याँ सूँ

फाणी भी नाळो होयो छै कदी फाणी सूँ?

तीन-

फाणी में आग मत रोपो

फाणी को सुभाव कोय न्हँ

हाथाँ में आग ले’र रोळो मचाबो,

फाणी की रकाण रखाणो।

फाणी तो पचा लैगो सगळाँ की पांती की आग

जे सबका मिजाज की आग पचाबो जाबक जरूरी होग्यो तो

पण फेर ओळमो मत दीज्यो

जे दाज ज्यावै सुपनां का डीळ

बळबळता फाणी का ताप सूँ।

लगौलग

चार-

म्हारे पांती को जागरण जी’र भी

तू कश्याँ अंगेज ल्ये छै आपणीं नींद में सुख

जश्याँ बाँध द्यो होवै थँनै आपणीं इच्छावाँ को सगळो सूत

म्हारी इच्छावाँ की सलामती की मनौती माँगता थकाँ

कोय देवता का थानक पे।

म्हारी मुळकण में मुळके तू

म्हारी काळम्यावाँ में कळपे

रळथळ होग्यो छै जाणै थारो सगळो अस्तित्त म्हारा होबा में

तू मनख छै के हेत की नद्दी में ब्हैतो पुन्न को फाणी

के जीं भी भाण्डा में अंगेजबो चाहूँ म्हूँ

धारण कर ल्ये छै ऊँ की भाण्डा को रूप।

पाँच-

फाणी

गंगा को होवै, के हौवे वोल्गा को

के सिंधु, दलजा-फरात, टैम्स अर मिसिसीपी को

फाणी कदी न्हँ करै दुभाँत कोय सूँ।

फाणी में बैठ्या देवता को खण छै

के जद जद भी बदैगो पाप ईं धरणी पे

धरम की आन रखाणबा बेई लेगा वे जलम

पण जे पाप के तांई ही मिटानो होवै

तो देवतान् का जलमबा की बाट कुण न्हाळै

फाणी में उतरो अर अर सीखो फाणी सरीखो होबा

पाप की पॅणी तो आपूँआप ही उतर ज्यावैगी म्हैड़ला सूँ

स्यात् देवतान् ने फाणी सूँ ही लियो छै यो गुण

न्हँ मानो तो ईं बेर एक डूबकी लगा’र देखो

पाप सूँ उबरबा की इच्छा ले’र

पुन्न को सूरज उगैणी आड़ी ऊब्यो मिलैगो

थाँ का संकळप को अर्घ्य अंगेजबा बेई।

स्रोत
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • प्रकाशक : लेखक रे हाथां चुणियोड़ी