जड़ सूं सूक’र

फूल पत्तां बायरो

उखड़’र

पड़नै आळो ही हो बो

कै अचाणचक

बरसगी बिरखा

जकी भर दियो

जड़ रै रोम-रोम हरोपण

हरहरावण लाग्या पत्ता

खिल खिल आया

मुरझाया फूल

न्याल हुयग्यो बो

पाछो हरहरा’र

लैहराय’र

पेड़ हुय’र

म्हैं भरीजग्यो थो

समन्दर ज्यूं

सुण,बा बिरखा तूई’ज है

हां तूई’ज तो है बा बिरखा

अर बो पेड़ म्हैं ही हूं

हां म्हैं ही।

बा सुणती रैई गुमसुम

अर ताकती रैई अपलक।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : वासु आचार्य ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर