वां
कद सोच्यो
कै-
गठजोड़ो खुलतांई
रणवासै रचीजसी
स्वारथ रा दांवपेंच
जीवण रौ आसरौ
चाणचक-
छूट जावैला
सासरौ।
राजपाठ छोड'र
जावणौ पड़सी
जंगळ मांय
फिरणौ पड़सी
अळवाणौ
अर
खावणा पड़सी
भीलणी रा
अैंठवाड़ा बोर।
जग रा तारणहार नै
एक मछुआरौ
करासी नदी पार
लगौलग-
दुस्टां रौ दांव
अजै ई है
पंखेरूवां रै
काळजै में
जटायू रौ घाव।
थारी
आंख्यां रा आंसू
बूझाय सकै
लंका री लाय
पण
तानां दैवणिया
नीं जाणै-
अबला रौ दरद
तद
करणौ इज पड़ै
अगन-सिनान।
समैसार
अंतस-उणियार
उणरी
हुयगी पारख
जाणै सै संसार
पण
अजै बाकी है-
पारख थारी
अवस आवैला चोड़ै
दौगला माणस री मनगत सारी।