लाल म्हारा
सपूत किंयां कहूँ तनै
पूत कैवतां हीं
आवै लाज मनै
पण जणदियो सो जणदियो
बो धोयां किंयां धुपै अबे?
आंतड्यां सूं रिसतो-उमगतो
अमोलो इमी पा-पा
पोख्यो पीड़ अन्तस री भोगतां
पाळ्यो-सहेज्यो वरदान-सो
भोळप समझ चावै कोड में
मां बणी तो बणगी
पण पूत रो भरोसो
पैलां किसो?
बो निकळसी सुमाणस
निवड़सी नकारो
का हुसी पूतळो बो पाप रो?
छाया अणचाही इसी ही कोई
जे थोड़ी-सी ही
म्हारी चेतना पर आ अटकती
तो पाप भ्रूणहत्या रो
नांखती हूं नाली में
बा गांठ गर्भाशय री
अर हुती राजी
समझती खुद नै भागसाळी।
तें मार्या जिता निरपराध
अर कुण जाणै
ओजूं कित्ता मारसी
ओळभो बींरो अन्तपन्त
आंधै नै हीं दीखै
खातै म्हारै खतीजसी
नांव म्हारै ही लिखीजसी।
मूळ रोग रो हूं हीं तो हुई
उठसी बीं पर ही
परबत पाप रो अभिशाप रो
कुण जाणै ढोस्यूं किता जुग
भार अणमीत बो?
देख, माया मोह री तूं
जणतां हीं तनै
पीड़ सगळी भूलगी,
तूं लागतो बाल्हो इसो
थारी देह नै चिपायां छाती
सेडो थारो सूगलो
गीड अर मळमूत रोगलो
पूंछती हूँ —
राजी हुती कित्ती
सिवा म्हारै
मांयलो ओ साच
दूजो कुण समझतो?
गति अनागत री देख तूं
हूं राजी हुई जिती
हुगी दुखी अर अभागी
अबार बींसूं सौगुणी।
सुणाऊं किंयां तनै
न आवाज आंसुवां में
अर न बा पारगामी जीभ में
उठै अणगिण फफोला
अर रह-रह
फूटै आपरै मतै
झरै अर करै,
ईलीड़ो काळजै रै आंगणै।
दिन री लम्बाई दूणी हुवै
रात हुवै चौगुणी
फोरती पसवाड़ा
देह करली खोखली
अर आभा हुगी आंधी
म्हारै उणियारै रे चांद री।
सोच इत्तो ही सतावै
कै कुसंगी कुमाणसां
पा प्याली मजहबी
म्हारी जाई-जलमी जीवणी नै
पढा पाटी
बणा भेडियो
क्यों घालदी गळै में थारै
जेवड़ी जिहाद री
अबै तूं —
जवान देखै न बूढों
देखै नहीं हांचळां नै चूंघतो
बाळको पौसाळ जांवतो।
आह भरती कोई
सवाढ सूती गोरड़ी गरीब री
न दीखै तनै —
डीकरी अनाथ री
लेवती पड़ाव
जावै पीव सूं मिलण पैलड़ी।
हुवै चावै माळा में मगन कोई
चावै हुवै पेट भूखो बापड़ो
ठंढी-बासी रोटी नै उडीकतो
जाग्यां-जाग्यां हाथ मांडतो।
न मजूर देखै
न किसान
काम करतो खेत रो
न सुणै बिलखती आवाज कोई
न हेलो सुणै प्यार रो
न सोचणों न समझणों
जाणै खाली
भूनणों अर मारणों।
समझ लियो आदमी नै तैं
चिणां अर मूंगफळी
पण मार्यां आदमी नै
न भूख बुझै पेट री
अर न मन री भरीजै
रीती कोथळी।
उबारणों हीं जाणे कोई
का मारणों हीं सीख्यो
बेचदी समझ नै
का राखदी अडांणै
चौड़े कर चावै छांनै।
कठोर नेम कुदरत रो
भोगणों हीं पड़सी
चौड़ै कर चावै छांनै।
सुणी मैं एक सपूत सूं जबानी
कै गैरै एक गाछ नीचै
एवाड़िया दो-च्यार
बांरा संगळिया केई
बंसरी री राग में
भीगै हा चोटी तांईं
दो छोरा हा नचैया बां में
बै बंसरी री धुन माथै
मोरिया-सा नाचै
पंछी डाळां माथै मौन बैठा
मिठास कानां सूं पियै।
पेड़ री छात नीचै
मेळो जाणै-
किन्नरां रो मंड्यो हुवै।
तळहटी में एवड़ चरै
बाजै टणमण बींरी टोकरी
न बींमें सा रे ग म
अर न बींमें
रागणी ही पक्की कोई
पण लय बींरी
मीठी अर अनूठी इसी
कळी-कळी खोलदै सुणनियैं री।
सुर बंसरी रा
अर आवाज
लय बन्धी टोकर् यां री
रचै सृष्टि अनूठी
सांवठी अर सोहणी
बादळां सूं ढक्यो आभो
धीरै-धीरै दिन ढळै
महीन-महीन मोती पड़ै
पादपां रै पत्तां माथै
बिना भेदभाव
पून प्राण बांटै सगळां नै
बीं बैळा
तूं अर थारै सागै दो जणां
थे खोलदी बन्दूकां
अर नाचता-बजांवता नै
कर नांख्यां ढेर बांनै
अन्धेरै री ओट ले
डरता फेर
अदीठ हुग्या बांठकां में।
धणी बिना धाड़ सूनी
विसराम नै उडीकती
कठै जासी
भेड-बकरी बापड़ी?
कुण बांनै टोरसी
कुण बांनै
बुचकारसी टिचकारसी?
बां काळजै री कोरां खातर
माईत अर लुगायां बांरी
ताकता एक दिस
आंख्यां कठै तांई
सून में उतारसी?
दर्द एक ही सतावै
कै काळजै री होळी बांरी
आंसुवां रै पाणी सूं
ठंढी हुसी
का लपटां बींरी-
और ऊंची चढसी?
रात री धिरियाणी
ओढती अन्धेरो
कूक-कूक सारी रात
लेसी किंयां भोर नैड़ो?
कथा आ करुणा भरी
उतरै जद-कद म्हारै काळजै
आंख्यां म्हारी औसरै
चेतना रा रूं सगळा
बा एकै सागै बालदै।
म्हारै एक चढै अर एक ऊतरै
मिलूं किंयां हीं एकर तैंसूं
तो कान थारा-
खींचूं नहीं काढलूं
अर बाहंड़ी पकड़ बूझूं
साची-साची कह
म्हारी कूख नै कुमाणस
तैं लजाई क्यूं?
जींवण नहीं देसकै
तो बींनै लेवण रो-
अधिकार तनै कण दियो?
हूं ओजूं समझी नहीं
कै बेटो भेडियै रो नहीं
मिनख रो
इत्तो डैळीचूक
डाकी किंयां हुग्यो?
जे पांख्यां हुती म्हारै
तो सूंघ-सूंघ
खोज थारा पून में
चीरती आकाश नै
पूगती जरूर थारै कनैं।
छोडती ब्याज-पड़ब्याज दोनूं
मांगती खाली
म्हारै दियोड़ै कर्ज नै।
अबै न शरीर साथ दै
तो ही सोचूं-दौरी-स्सोरी
टुरपडूं किंयां हीं
पण खड़ा
सीमा माथै सन्तरी
बन्दूक सांभ्यां आपरी
कुण बधण दै आगै
मनै पूरो पांवडो ही।
लाचारी में नांखती निसासां
टैम काढूं एकली
लुक्यै-छिप्यै नै
जे तनै टैम लाधै
अर पढण नै जे जी करै
तो नैड़ी राखै
अगली कड़ी काळजै रै।
पढी परस्यूं हीं अखबार में
भूख रै बिसै
अकाळ रा उथपाया
बिहार रा मजूर बीस
मां-बाप बूढा
लुगाई अर बाळ-बच्चा
छोड बांनै रामजी रै आसरै
हजार कोस आ लिया
खस आखो दिन भट्ठां माथै
खा-पी धक्योड़ा
सोया हा बेचारा
पड़तां हीं फिरी नींद
आंख्यां पर तिरै हा बांरैं:
सपना मां-बाप रा
लुगाई-टाबरां रा
घर री अवस्था रा
गांव रा-गवाड़ रा
पण सुख सपनै में हीं कठै
बै ही अधूरा रैया
तैं अर थारै साध्यां
बांनै सूतां नै हीं भून दिया
न थारा हाथ धूज्या
अर न काळजा ही कांप्या
रह-रह अचम्भो करूं
कामण्यां री कूख में
थे जलम्या किंयां भेडिया?
तूं अणघड़ भाठो तो नहीं
बाको खेल इत्तो तो बता
किरणां सूं लिख्योड़ा
संस्कार थारा
काळा किंयां हुग्या?
अरे लाज नै लुकोवती
लुगायां बांरी
कागला उडावती
सोच-सोच भळे सोचसी
पीव आसी मुळकता
अर पइसा लासी मोकळा
विसराम दे बोदियां नै
लेस्या नुंवां लैंघा-ओढणा।
अर नुंई-नकोर कांचळी
आंयां बारै बापरैली।
पीव सूं मिलण री पीड़
नित ऊंची आवै
उड रे काग देऊं दही भात
कह-कह कामणी
कागला उड़ावै।
हर बाळक नै समझावै मां
बेटा, बापू थारो आवतां हीं
बापरैला थारै
नुंवां जूता नुंईं चड्डी
नुंवों बसतो नुईं पोथी
अजाण बै-
मां नै पूछसी कदेई,
स्कूल तो खुलगी मां
अबै बापू कणां आसी?
मां रा होठ बन्द
आंख्यां आंसुवां सूं बोलसी
पण आवाज नहीं
फेर बाळकां पर कांईं बीतसी?
केयां रै जवान बेटी
ओढणै में आग बांध्यां
चिन्ता करै मां बैठी।
बैठी-बैठी रोज सोचै
कद आवै बै
अर कद आ धोरै चढे?
कद लेऊं नींद सुख री
कद सास स्सोरा आवै?
मां-बाप बूढा
अधनागा अर अभागा
दम दौरो आवै
जी अमूंजै दिन में हीं
टसक-टसक रात काढै
जठै दाळ रोटी दौरी
बठै दवा दारू कठै?
बै एक ही अरदास करै
एक ही उडीक राखै
कै छोरो आवै सान सेती
हंसतो-मुळकतो
तो चिन्ता सूं मुगत हुवां
सास रो बिसास किसो
मिलाप करलां छेकड़लो
पण सुणसी बै
खबर आ अणचींती
तो भूख-
अर व्याधि रा सताया
हंस बांरा
दिस अजाण में उडाण भरसी
का लकवो अंगेजता
रैसी आधा मर् या
आधा जींवता।
तूं छिण भर बैठ एकलो
सोचतो कोई
कै आ कमाई म्हारी
दही जिसी ऊजळी
का कोयलै-सी काळी?
आ मजब री सेवा बजै
का कुकर्मां री कोथळी?
पढ़ी एक दिन-
गुरुद्वारै, गुरुग्रन्थ रै किनारै
इमरत रो पान करता
मानवी अठ्ठाईस बैठा
थे बिना सोच्यां
बिना समझ्यां
बांनै भूनदिया किंयां?
बां थांनै गाळ काढी
का चोरी करी थारी
बाळदी कुरान
का फैंकदी मंदिर-मसीत में
मैलवाई कोई?
कित्ता-कित्ता पाप थारा
रोज ऊघड़ै
कींनै टैम कुण ढकै
म्हारो काळजो धुखै
तो ही धुंवों किसो नीसरै?
बुद्ध री मूरति विसाल
हजारूं बरस जूनी
बा बोढै ही चूंठिया
का कर-कर घोड़ा थांनै
थारै ऊपर चढै ही?
थांनै ईं में मिल्यो कांईं
किंयां तोड़दी?
भूख मिटगी
का आई नींद स्सोरी?
मन्दिर अर मसीत तोड्यां
न राम मरै
न बिगड़ै कीं रहमान रो
पत्थरां नै तोड़ कोई
क्यों चौड़ै करै माजनो?
एक अणघड़ पत्थर नै सरूप दे
दिन-रात मैनत कर
त्यार करै मूर्ति नै
एक नै दाळ-रोटी
सन्तोष मिलै दूसरै नै।
थे मत देखो फौड़ो
कुदरत खुद ही तोड़ देसी
चांद-सूरज रोज टूटै
अटूट अठै कोई नहीं,
चलो, आंधियै आवेश
अकल थारी काढली
ये मूर्ति नै तोड़दी
पण आदी घड़नआळो
एक टूटी
तो त्यार करदी दूसरी।
जिकां रो देवता हिमालै
बींनै किंयां कोई तोड़सी
पूजै जिका
सागर अर गागर नै
नदी अर निर्झर नै
खेत अर खळै नै
हळ अर हाल नै
चाकी अर चूल्है नै
तवै अर चींपियै नै
गाय अर गोधै नै
ऊंखळी अर मूसळ नै
कुवै अर कुंड नै
खेजड़ै अर पीपळ नै
बड़ अर बोरटी नै
आक अर आम नै
सुपारी अर नारेळ नै
मावड़ी-सी मान
सींचै रोज तुळछी नै
हाथी नै अर होम नै
तीर अर तरवार नै
चाँद अर सूरज नै
आग अर पाणी नै
पूजै शाळगराम मान
गोळ-गोळ गुळगुचियै नै
मान शंकर रो सरूप
स्नान करावै शंकर नै
अर शेष रो अवतार मान
दूध पावै सरप नै
अबै कींनै-कींनै तोड़स्यो
अर कींनै-कींनै मारस्यो?
धरती एक मूर्ति सजीव
मावड़ी बा मानखै री
अर आखी जिया जूण री।
नांख नांख बीरै पेट में
कचरो तेजाबी
फेफड़ां में घाल बीरै
धुंवों जहरी अर जल्लादी
काट-काट
छांग-छांग
ई मूर्ति नै करदी
फूटी तीन कोडी री।
मानखो छीजै
कारखाना जीयै
धरा अमूंजै
पण नागाई पर ऊतर् या
कद सुचै?
कद सुणै?
आंख खोल देखलै कठै ही
निजर जावै जठै ही
हर मां जलमै टाबर एकसा ही।
सगळां रै बै ही हाथ-पग
बो ही मूंढो बो ही माथो
बै ही आंख-नाक
बा ही भूख-तिस
बो ही रोणों-हंसणों
लोरी सागै नींद बा ही
एकसो ही पालणों।
न जात-पांत
न ऊंच-नीच
न गळै में जेवड़ी जिहाद री
एकसी ही जातरा
आवण रो निकास एक
अर पूगण रो मुकाम एक
बाळक सगळा रामजी रो रूप
मैक नै बिखेरता
धरती नै हंसावण खातर
खिलै सगळा एकसा
अर बिखेरता उदासी
मुरझै सगळा एकसा।
हर मां,
गर्भ नै रूखाळती
पीड़ नै परोटै एकसी।
रातदिन एक ही अरदास करै
कोई भलै जिसो हुवै
तो हेत नै उडीकती
नव-नव ताळ धरती ऊछळै।
अबै फेर तूं काळजै में कांगसी:
चाल नै बदळसी
का कांटां री सड़क पर
बां हीं पगां दौड़सी?
हिड़काव उठ्यो
हांफळा इंयां हीं मारसी?