जद कदैई देखूं
आकासां उड़ता पतंग
रंग बिरंगा
लाल, पीळा, नीला, धोळा
उड़ता, लहरांता, पेच लड़ांता
तो लागै जाणै मैं भी
एक पतंग ही तो हूँ
जिणरी डोर कोई रै हाथ में नी
फगत एक तार स्यूं बांध'र छोड़ दी है
उड़ तो सकूँ
पर उतणी ही
जित्ती डोर अरगणी स्यूं बन्धी है
ना आगे न लारे
कोई रे हाथ में ही नी है
फेर भी बस बंधी-बंधी सी...
या तो कोई थाम लेवै डोर
या फेर टूट ही जावे
कीं तो हो
के ठा किस्मत कीं सावळ ही हो
लाग जावे ऊपरली हवा
और मैं उड़ती जाऊँ अर उड़ती जाऊँ
दूर गिगना स्यूं पार
अर जा मिलूं
साँवरे सेती...!