बाळपणै में ही

म्हारै परिवार वाळा

मेळै में

खुदवाय दियो

म्हारो नांव

अबै म्हैं

बदळणो चावूं

लाख जतन करूं

पण बो

हाथ माथै खुदयो नांव

म्हारो लारो नीं छोडै

चामड़ी री तरै

चिपक्योड़ो है

बो ईज नांव।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पुनीत कुमार रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ