माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ

ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगै हालै धोरौ

रूपल रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे

कोई पांणत गंगा ऊतरै!

धौरे पांणी ढळे ढाळियौ दै माटी रौ घीयौ

कोरवांण में करै चांनणौ, दीवाळी रौ दीयौ

आभै ऊपर हंसै किरतियां, मन बिलमावै बौरौ

जूनां हेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ

ओडूं पांणी भरै घड़लियां आगै हालै धोरौ

रूपल रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतियां वीरा चेत रे

कोई पांणत गंगा ऊतरै!

आडंग आवै मावटै रौ, पड़ण लागज्या पाळौ

हेमाळै सूं होड करणनै, ऊभौ खेत रूखाळौ

सीयाळै री रात में, भाई पांणत करणौ दोरौ

ठंडा खेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ

ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगै हालै धोरौ

रूपल रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे

कोई पांणत गंगा ऊतरै!

भारत में भागीरथ लायौ, भाखर ढळती गंगा

पण थेट पताळां नीर निवायौ, आवै पांणत गंगा

लीली खेती लहरावै है, दै पांणतियौ पौरौ

साख समेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ

ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगे हालै धोरौ

रूपल रेत रे!

पैलौ जोटो आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे

कोई पांणत गंगा ऊतरै!

स्रोत
  • पोथी : चेत मांनखा ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : कोमल कोठारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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