जुगां-जुगां सूं

हथेळियां री ओक बिचाळ

मिनख पी रियो है इमरत

अर मिटाय रियो है आपणी तिरस..!

सिरजण रा रूंख बोय नै

करै है संस्कृति रो बधापो।

पण

लारले कई दिनां सूं

पाणी सिर माथै गुजर रियो है!

मानखो अब

पाणी री राड़ कर रियो है

अर पाणी

हो रियो है त्यार

मानखां री भीड़ नै निगळबा खातरI

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : मोहन पुरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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