पान झरै तो काईं

झर जाओ भलांई!

कदास नीं होवै

उमर खोलै चौपड़ी

काढै

कोई लियो-दियो।

जूना हिसाब खुल्यां

लाग जावै

ब्याज-पड़ब्याज

फेर भलाईं

उमर रेवै ठंड दाईं

पान झरै तो झरो भलाईं।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन