पान झरै तो काईं
झर जाओ भलांई!
कदास आ नीं होवै
उमर खोलै चौपड़ी
काढै
कोई लियो-दियो।
जूना हिसाब खुल्यां
लाग जावै
ब्याज-पड़ब्याज
फेर भलाईं
उमर रेवै ठंड दाईं
पान झरै तो झरो भलाईं।