मां जणै-कणैई

बड़ोड़ै भाईजी पर बळती रीसां

मारती, कूटती

तो थै तो कैवता हा-

आखै दिन मत झक्या कर,

अर हाथ मत उठाया कर इण माथै

बड़ौ हुवै

ईं नैं प्रेम सूं समझा।

देखो, भाईजी अबै

कित्ता स्याणा हुयग्या

कोई चीज याद नीं दिराणी पड़ै

खेत रै काम सूं लेय’र

बैंक रो ब्याज भरणै तक रा

सैंग काम आजकल बांनै

याद नीं दिराणा पड़ै।

गाम-गवाड़ में मंड्योड़ै किणी अेढ़ै-मेढ़ै सूं

रिस्तेदारी में काण-मौकाण तक

सब आपोआप संभाळ लेवै।

उलटै रा बै

अब मां नैं याद दिरावै

टेमोटेम दवाई लेवणी

म्हनैं भी पूछै म्हारी

भणाई बाबत

अर केई बार तो मोड़ै तांई

जाग’र बणा देवै

म्हारी विग्यान री

कापी रा चितराम भी

अर सोंवती बगत

आप संभाळ’र आवै

बारलै आड़ै री सांकळ।

पण बापू!

थै भी तो प्रेम सूं

समझाय सकता हा नीं बांनै

बांनै स्याणा करण वास्तै

थांनै दुनिया छोड़णी

कांई जरूरी ही?

स्रोत
  • पोथी : अैनांण ,
  • सिरजक : आशीष पुरोहित ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन
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