जद उण नै देखी

पैलीपोत

अंधारै हियै जागी

कोई अखंड-जोत

म्हां साम्हीं

जद वा मुळकी

पैलीपोत

म्हारै हियै खिल्या

हेत रा फूल अकूत

जद वा

खोल्या होंठ

पैलीपोत

हिवड़ो हुयग्यो मोरियो

नाच्यो लुळ-लुळ भोत

जद निपजै हियै हेत

पैलीपोत

जलम लखावै लाखीणो

पैलीपोत।

स्रोत
  • पोथी : नेगचार राजस्थानी ई-पत्रिका ,
  • सिरजक : नवनीत पांडे ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • संस्करण : अंक 26
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