गिगन-मंडळ में

सब सूं पैला ऊगण वाळा

पैला तारा!

थूं नी जाणै के

इणी'ज आभै माय थोड़ी ताळ पछै

ऊग जावैला

लाखू-करोड़ तारा!

अेक अेक सूं सवाया

अेक अेक सूं वत्ता

अर वां सगळां रै बीच

पिछाण्यौ नी जावैला थूं!

पैला तारा!

थूं आकास री वा इंछा है

जिकी परगट व्ही

एक जोती रै रूप में

अंधारै सूं लड़ण वास्ते!

पैला तारा!

थूं आयौ उण बगत

कट रैयौ हौ सूरज रौ किनकौ

अर आथमतौ दिन

संवेटण री तय्यारी में हो

सिंझ्या रूपी गिड़गिड़ी माथै

किरणां री डोर ने

अंधारै रो कांई पूछणो!

जीत री खुसी में उण टैम वो

व्है रैयौ हौ फूल'र कुप्पो

अर सरू कर दिया हा मौका देख

आप रा पग फैलावणा

पैला तारा!

थूं इज हो वो पैलौ सगस

जिको ऊठियौ साव अेकलौ

अंधारैरै उण अन्याव रै खिलाफ

खुद री इज हिम्मत रै पाण!

सवाल नी हौ हार-जीत रौ

सवाल हौ अन्याव री खिलाफत रो

थूं इज तय्यार व्हियौ लड़न वास्तै

अेक इण आस माथै

के भूल्या-भटक्या बटाउवां ने

मिल जावे कोई गैलौ कदास!

पैला तारा!

थारी देखा-देखी अबारूं

अर जद-कद बगत-बगत माथै

ऊग जावैला तारा असंख

तद जोयां नी लाधला थूं

वां सगळां रै बीच!

उण बगत नी व्हैला थनै मैसूस

अेकलपणै रौ भाव

अर लोग जावैला भूल

के वौ तारौ कुण-सो है

जिकौ पैल करी !

पैला तारा!

देर रात गयां जद म्हैं

सूतौ व्हूंला जागतौ तिपडै

आकास-मंडळ कानी मूंडो करियां

तद थाक जावैला म्हारी दीठ

थने जोवती-जोवती

पण आंख्यां आग व्हेतौ थकौ थूं

नीं तौ सकैला पिछाणीज

नी सकैला लाध!

पैला तारा!

कदै-कदैई जद म्हैं म्हारो

टंटोळण लागूं हीयो

तो झबूकती निंगै आवै

अणगिणत इंछावां उणरै मांय

पण नीं बता सकं म्हैं आज

के जद म्हैं आयो इण धरती माथै

तो म्हारै अंतस मांय सब सूं पैला

कुण-सी इंछा जलमी ?

कुण-सी...?

पण जद-जद म्हैं थनै देखूं

तो की अैड़ो लखावै म्हनै

के म्हारी वा पैली इंछा

जलमी व्हैला अवस

किणी अन्याव रै खिलाफ

किणी हक रै वास्तै!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : जुगल परिहार ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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