विधाता घड़ी मूरती मोवणी

पदमणी! पदम-सी कंवळ बाला

रीझणै रूप री, खीझणै सुभाव री

मोहक रति-सम, अधर रसाला।

पलकां-सरोवर खिलियौ पुहुप इम

भोंपणा भंवर-सा भंवै ऊपर

कमनीय कपोल री कांमणी पदमणी

नाक रौ तीखपण खड़ग-धारा।

नागणी-वेणी केश रौ कहूं कीं

आंगळी ओप री ढळी सांची

गजगामणी! हवळै बैवती ठसक सूं

द्युतिमय वनिता कंवळ काया।

करण कुसुम-सा, कुरज जिम नस ही

सवायी दीसती लिलाड़-सोभा

कड़ियां कटकती पातळी पींडियां

पदमणी! अपछरा धरा छाई

रतन रै हिंयै नै भला भायी।

मानसरोवर सोहै जिम हंसला

लोक में चावी चारू चंचला

सुंदरी! विधि री सरसतम कल्पना

अळेखूं हिंया नै पलां में मोहै।

पदमणी! रतन री बणी अरधांगणी

मुगट मेवाड़ री अजै सोहै

व़खत रै व़ायरै लुळी नीं वीरांगण

समरांगण कंत हित रही लारै।

सह जग जांणै आंधियां ऊरड़ती

मेवाड़ मही पर जदै छाई

साको करण री तेवड़ी रतनसी

पदमणी क्षात्रवट रीत पाळी।

जूझिया अनेकूं जोधार जुद्ध में

रगत सूं खेलिया कई होळी

मान-सम्मान री बात नै राखवा

वीरां! मरण री बाट लीधी।

सजायौ दुरग नै बींदणी जिसौ

'साके' री सूरमा त्यारी कीधी

जीवण सुधारतां मरण नै सुधारण

रतनसी हरावळ लड़ण री सोची।

निरभम निस्चंतै नाहर रतनसी

भांमणी भरोसै भिड़ण सोची

पदमणी कंत नै कुंकुंम थाळ ले

वधायौ, जुद्ध हित व्हीर कीधौ।

रांगड़ रतनसी रिपुदळ छांगियां

धज केसरिया रखी ऊंची

हर हर हर हर सुणीजी चौतरफ

इकलिंग तणी जयकार गूंजी

पोढ़ियौ रतनसी समर री सेज पर

आंण री ऊजळी आबरू राखी।

पदमण! तेवड़ी झळां में जूंझणौ

सबां नै दुरग में समाचार दीनौ

उगतै अरक नै अरघ चढ़ावण

कामण्यां हजारां उठै बैठी।

काठ री चिता चिण, चंदन लकड़ियां

घृत अर खोपरा किया भेळा

कुंड भल सजायौ वीरांगण मान हित

पावन-प्रीत भल लिया हबोळां।

द्विज मंत्र उच्चारिया मंगळ

सहिया हिळमिळ गीत गाया

ऊगतै अरक नै चढ़ाया कळश जळ

हाथ जोड़ सहस्रां शीश झुकिया।

बंद कर आंखियां मनां की वीणती

सत री लाज रख काछबजाया

जिणतर थांरै प्रकास सूं पळहळै

अखिल भुवन में प्रभा-पवीता

उणीतर राखजै म्हानै प्रकासित

निकळंक अदिति आंण सारू।

इतै में अरक भल आप दी अगन नै

झळहळ उठगी जबर झाळां

परिकरमा दे जयघोष करती

पदमणी निहारियौ दुरग-दुरगम।

निहारिया नैण सूं विटप अर लतावां

प्राचीरां, महल नै फेर देखी

झट तज मोह सब जगत जंजाळ रा

ओउम् ऊंकार में जाय रमगी।

पदमणी झूलरै साथ इम ऊतरी

कुंड रै मांयनै जोत जळगी

नस्वर काया अनस्वर बणतां

झळां में सुंदरी जाय न्हाई।

रोकियो सूर रथ, आविया विबुधगण

पल हेक घड़ी संसार री थमगी

बीसारियौ नारद-वीण रै तार नै

सुरसत ऊंडै ध्यान में खोयगी।

अचरज करतां गोरजा पूछियौ-

'शिव! इण पदमणी कांई कीधौ?'

जटाधर बोलियौ- 'सुण! हे शंकरी,

राह रजवट री विकट अनोखी

कंत सूं मिलण री तेवड़ै छत्राण्यां

अगन री साख भर लड़ै-जूझै

जगत में क्षात्र-कुळ पोखै साच नै

भिड़ै रिपु भंजणां भारथ मंडै।'

अजैलग प्रकासै चित्तौड़ अवन पर

पदमणी तणौ प्रकास त्याग रौ

नमै लख नारियां, झुकै लख नेह-नर

व्हैगी अमर वीरांगण समर वर।

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