चांदो अेक

सूरज अेक

आभो सिरजणहार

मिनख अेक है

जमीं अेक है

थारी निजर अनेक

नीं बरसै तो नीं बरसै वो

सूरज नैं बरसाय

तावड़ौ तीखो

तीखी मार

टाबर सगळा जमीं बैठग्या

ना है पत्ता, ना ही पेड़ है

ठूंठ-ठूंठ रा गांव पसरग्या

पणघट ऊभी

करै अरदास

अब तो बरसो पाळणहार...।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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