घणा हेतुलां सुणो-सुणो म्हारा

सांच गळै क्यूं पड़्यो गळूण्डो?

घात-बावड़ी-राग-रागळी

करै लाखीणों जीवण भूण्डों...॥

हीर-हटक नीं रैई धण्यां री

सगळो बिगड़ रैयो काढो

घट रैई दिन-दिन सरम आंख सूं

पाप पिघळ जद आवै सामो...।

नामी नांव कुनांव करै

कुनांवी नांव कमाय रैया

रेवै कपूत सपूत सूं आछा

खांध नैं आडा आय रैया...॥

ऊंठ खोड़ावै गधा डामीजै

जीवण सड़ै जणतंतर रो

हाथी-घोड़ा हुवै नीं बरोबर

नास करो क्यूं सुतंतर रो...?

आय बारणै पूँछ हिलावो

गंडक हिलावै ज्यूं बाखळ रो

गंडक भळै करै रुखाळी

थै आं ‘सूं’ ग्या-गुजर्‌या हो...॥

घणा हेतुलां सुणो-सुणो म्हारा...॥

स्रोत
  • पोथी : नँईं साँच नैं आँच ,
  • सिरजक : रामजीवण सारस्वत ‘जीवण’ ,
  • प्रकाशक : शिवंकर प्रकाशन