हो म्हारा बाबल बसै जी परदेस,

पीहरियै कुणी तो पोंचावै।

हो म्हारा सासू नीं देवै सन्देस,

कागदियो कुणी तो पोंचावै।

आई सावणियां तीज, मेंहदी रची हाथ में,

नानी नणद रूस जाय बात-बात में।

हो पेर्‌यो देवर जी जोगियां रो भेस,

पीहरियै कुण तो पोंचावै।

नौकर नीं चाकर म्हूं अठी-उठी डोलूं,

घूंघट सूं झांक झीणी जेठ जी सूं बोलूं।

तो म्हारी जेठाणी करै रै कळेस,

पीहरियै कुण तो पोंचावै।

लोगां में हांसी म्हारै मायड़ मौसी,

सुख-दुख में साथ देवै घर रा पाड़ौसी।

हो म्हारी पत राखै प्रभु द्वारकेस,

पीहरियै कुण तो पोंचावै।

केसर-कंकू रा कोर मांडणां मण्डाया,

आंगण ‘अनोखा’ चौक मोतियां पुराया।

हो कोई पीवजी नै करद्‌यो रे सन्देस,

पीहरियै कुण तो पोंचावै।

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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