धरती किंयां बणी

अर कण बणाई

चालै कद सूं

बणन रो छेकड़ मुतळब

मकसद कांई?

बणगी आप मतै ही

इणनै भगवान बणाई

कुतर्की तर्क बावळो बेअरथो

पगां-बायरो उळझमती

बाजै मन री पून

मनसबी टीबां में

पगलिया कठै ढूंढसी?

पेडू सूं परबारो जा

पत्ता कद-कद गिणसी?

तूं तो बस इत्तो जाण लै

आंख उघाड्यां सूं पैलां हीं

तनै सजी-संवरी

बणी-बणाई त्यार लाधगी।

तूं बड़भागी

हींग लागी फिटकड़ी

चूंघण नै चसड़-चसड़

मिलग्यो जीवणरस

सोवण नै

लाडलडाती

मां री छाती

हेत पालणों हींडा हींडण

खेलण आंगण

गोद रमांवण

आखो कुणबो जन-गण-मन

पूरा पखधर साथी-सज्जन।

गांव नगर

खेत सड़क

अर मैदान मनोहर

सै थारा अर थारै खातर।

गांवती नद्यां

अर नाचता निर्झर

चांदी ओढ्यां भाखर-भूधर

पैर् ‌यां मेघमाळ बरसतो अम्बर

हंसती-रसती वनस्पति

पेड़ों रा झुरमुट

हरख हबोळा लेतो सागर

सै थारै खातर थारै खातर

धन-धान सूं भरी-तरी

धरा धापती

पगां बिचाळै पड़ी दड़ी-सी

बिना मोल अणमोली

मिली तनै किसीक स्सोरी?

बणतो कृतज्ञ

आभार मानतो

भोगतो सुख-रासि अणमींती

सही सोच रै सागै बधतो आगै

तो देख तनै स्सोरो

अर साव सजोरो

धरती नव-नव ताळ उछळती

घूघरिया धमकाती

बता-बता

बा राजी हुंती कितरी?

तूं ऊंध कुपाळी

खोदै पेट धरा रो

खेती नै खाड़ै में नांखै

अर खायो चावै चांदी-सोनो।

स्नेह मांगती प्यासी धरती

सोनै सूं कद सरस हुई

विश्वास नहीं

तो उथळलै इतिहास

गई कठै सोनै री नगरी?

तैं आंधै घोड़ै करी सवारी

बंध भौतिक भूतां री माया में

फूल्यो-अणफूल्यो

तू भूल्यो धरती री मनस्या नै

ठीक चुकायो कर्ज बावळा

तैं परोटी

भली केवटी बींनै?

विचरती पून धरा पर

प्राण बांटती

तैं फूंक-फूंक

डीजल, पैट्रोल, विषली गैसां

कर-कर धुंवों दुर्गन्धी

जीणों कियो हराम

सास-सास में पीड़ा भरदी।

महानगर री घड़कण धूजै

बींरो रक्तचाप चढै-ऊतरै

बींरी माया में

निर्धन रा गुर्दा मोल बिकै

करा-करा प्रत्यारोपण

तूं इंयां काढसी किताक दिन?

तैं करदी नागी

प्राण पोखती

पहाड़ां री लजवन्ती ढाळां

आंधै हाथां बाळदिया

हरा पोमचा बांरा।

सिसकै घाट्यां

रोवै ढाळां

ऊभा सूकै पहाड़ बेचारा।

निर्मळ नीर लियां

कुण जाणै

गंगा-जमना-सी धारावां कित्ती

खा-खा जैर मसीनी

कीच कचबड़ो तेजाबी

अखूट मूत

अर मळ सहरी

रोग बांटती जन-जन नै

दुहागण-सी दुखियारण

रो-रो चालै डील घींसती

कहदे, दीदा खोल कदेई

तैं लीनी सुध-बुध बांरी?

खावै खेत

टीडी नहीं डीडीटी

अर पड़ै फळां पर कीट विनासी

और तो और

तैं करदी सगळी रेत रोगली

फेर बचै अछूतो किंयां आदमी?

हुवै अणुबम्मी

प्रेत परीक्षण भूगर्भी

हंसै हथियार

रोवै सुषमा धरती री।

टैम्पू बोकै

कारां कूकै

माईक पर मानखो बैठो

कोलाहल में कान पकै

मालकोस माड में मिलगी

भीड़ में भोपाळी

गाणों-रोणों एकै भाव

बोळै भाऊं

सगळी राग सरीसी।

पून, पाणी, प्रकास

आभो उदास

धरा रोगली झरै घाव

भुगतै-मरै मानखो बेभाव।

नित-नित बापरै नुंवां रोग

अर नित-नित निकळै नुंवां इलाज

घींसीजै बीमार मानखो

पइसो चालै खाथी चाल।

समझदार, धरती तनैं मिली किसीक

तूं हीं सोच तैं करदी किसीक

खुद रै खुरडां मत मार कुल्हाड़ी

मत बेच दीठ जड़ जंत्रां नै

ले बैठैली

दुरासीस धरती री।

कांटा थारी करतूतां रा

रोप्योड़ा ऊंडा

आंती पीढी किंयां काढसी?

बा गीतां में गासी

का दे-दे ठोला

थारै गौरव माथै गिंज घालसी?

राख सकै तो राख

एक सूत्र में स्याणप सगळी

कै जीवण-आभा धरती री ओजूं हीं

बचा सकै तो बचा किंयां हीं।

स्रोत
  • पोथी : ओळभो जड़ आंधै नै ,
  • सिरजक : अन्नाराम सुदामा ,
  • प्रकाशक : आशुतोष प्रकाशन बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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