म्हारो एकलपो

रोज बणै

पतझड़

अर रोज झाड़ै

महारै सुपनां रै

रूंख रा पत्ता,

पण रोज खिलै

मन रै बागां

नवी उम्मीद रा फूल

जद बसंत बण ज्यावै

म्हारी उडीक!

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : थानेश्वर शर्मा
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