म्हारो एकलपो
रोज बणै
पतझड़
अर रोज झाड़ै
महारै सुपनां रै
रूंख रा पत्ता,
पण रोज खिलै
मन रै बागां
नवी उम्मीद रा फूल
जद बसंत बण ज्यावै
म्हारी उडीक!