सोधूं म्हारै मन में

थारौ उणियारौ

इण अंधारै मांय,

ओळूं ओळावै थारी

तद आय बैठै थूं

म्हारै मनड़ै री थळी।

खेंच जावै थूं

यादां रा चितराम

देखतो रैवूं

आखी रात सुपना।

थूं होयगी म्हां सूं

अदीठ

अर म्हूं खो दियो

खुद रो आपो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : संदीप ‘निर्भय’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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