धूप-छांव री लुका छिप आ
भोर-सांझ री हलचल आ
रथ भान रो भाज्यो जावै
ओ मानखो बीत्यो जावै
रोक सकां कद ईं पळ नै
कुदरत री ईं कळ कळ नै
पसीनै में बळ घुळतो जावै
ओ मानखो बीत्यो जावै
नवो घड़ां बणै पुराणो
कदे समो कदे काळ कुराणो
आंधी में बादळ रुळतो जावै
ओ मानखो बीत्यो जावै
डेरूं बाजै बाजण द्यो
बळै भींटका बालणद्यो
भागी खांतो पींतो जावै
ओ मानखो बीत्यो जावै।