तम रो चीर कालजो बढ़सी, जो सूरज दिन रात रै।

बोई दुनिया मैं ल्यावैला, नुवों नुवों परभात रै॥

बादल सूं जो किरणां डरपै, उण रो कांई मोल है।

तूफानां सूँ तट हारै तो, वीं रों कांई तोल है॥

जो साहस देवैला सामी आपत्यां नै मात रै।

बो दुनिया मै ल्यावैला, नुवों नुवों परभात रै॥1॥

जीवण मैं दुख रो आणू तो, जागण रो संदेस है।

हीमतआला कै सागै ही, मंजिल रो अपणेस है॥

जो फूलां री सौरभ ल्यासी, सह कांटा री घात रै।

बो दुनिया मैं ल्यावैला, नुवों नुवों परभात रै॥2॥

जाणै कितरी नावां डूबी हैं सागर री लहरां मैं।

कितरी जिन्दगान्यां लुटगी पतवारां रा पैरां मैं

जो मांझीं देसी नौकां नै, साहिल री सौगात रै।

बो दुनियां मैं ल्यावैला, नुवों नुवों परभात रै॥3॥

ऊँचो राख मनोबल बढ़सी जिका मिनख अभिमान सा।

बा नै सिध होवैला, विपदां रा बादल बरदान सा॥

जां रो पौरुष देख रुकैला युग रा झंझा वात रै।

बो दुनियां मैं ल्यावैला, नुवों नुवों परभात रै॥4॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : कुन्दनसिंह सजल ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै