जोरां सूं कवि सम्मेलन चाल रह्यो हो

सै गा सै कवि मंच माथै बैठ्या

माइक कानी भूखी निजरां सूं देखै हा

माइक हाथ लागतां धाप-धाप'र फेंकै हा

इतै में मंच चरमरायो

धड़ाम सूं नीचै आयो

सगळा कवि गुड़ग्या

की फंसग्या की रुड़ग्या

आयोजक रो चै'रो उतरग्यो

बीं रै माथै पर पसीनो निसरग्यो

बो हाथ जोड़ता थकां बोल्यो

म्हूं भोत सरमिन्दो हूं

कवि बोल्या, इण में

सरमिंदगी आळी कीं बात नीं है

पीड़ तो हुवै, पण सागै अेक खुशी री बात है

बीं’रे नीचै पीड़ दबगी

क्यूंकै म्हाने कविता लिखण खातर

अेक नवीं घटना मिलगी।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (तीजो सप्तक) ,
  • सिरजक : सतीश गोल्याण ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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