खरी मजूरी माथै झेलां,

ठंड तावड़ो बरखा।

सुण जो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

लूखी-सूखी ह्वै जो खावां,

लार लगावण मरचां।

पीयां राब नै, चणा चाब नै,

फेरूं मन में हरसां।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

फटी पगरखी, लीर अंगरखी,

फाटो फेंटो सर सा।

घास-फूस रो वण्यो टापरो,

टूट्यो-फूट्यो घर सा।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

घर धणियाणी, खेतां-चाली,

रमता रै टाबर सा।

गायां-भैंस्यां, बळद-बाकरा,

जीं सूं ह्वै गोबर सा।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

भणवा, खणवा नाम सुणा तो,

म्हानै लागै डर सा।

गांवा-गांवा सूई लगावा,

जद आवै डाक्टर सा।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

वोराजी रै गेणै मण्डग्या,

ढोर खेत जेवर सा।

चाकर कर चरणां में राखै,

गाम धणी ठाकर सा।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

दसखत करणो, कागद भणणो,

नीं जाणां आखर सा।

गुरु ‘अनोखा’ ज्ञान देय तो,

सुधर जाय ऊमर सा।

सुणजो मास्टर सा,

म्हे तो हां करसा॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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