भूख घालै घेरो

गरीब रै आंगणै

नीं करै खंखारो

नीं बजावै सांकळ

पण छोडै नीं लारो

आय धमकै

आये दिन, हरमेस

ऊंच चिंतावां रो भारियो

बिन्या कोई दिन टाळ्यां।

दिनूगै-सिंझ्या

भूखै पेट उडीकता

मा-बापू

टाबर-टीकर

किण नै कैवै

अर कैवै कांईं

जुलमण भूख

थकै, नीं मरै

भखै गरीबड़ां रा डील

सुरसा ज्यूं बधती

इण डाकण वरणीं सूं

छूटै नीं लारो

सोचतो डोकरो

निकळै घर सूं बारै

चूंचां रै चुग्गै सारू

मन में विचारतो

कित्तो भलो होंवतो

जे जग में नीं होंवती

निसरमी भूख।

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार सप्तक ,
  • सिरजक : संजय पुरोहित ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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