बीं दिन निंनाण करती बगत

तेरी लिलाड़ी सूं होय'नै

मोठ रै पत्तां पर

पड़ता

परसेव रा टोपा देख'र

म्हैं बोल्यो–

देख बावळी

नान्हीं-नान्हीं छांट पड़े

जिंण सूं

मोठ रा बूंटा चेतन हुग्या।

तूं म्हारी बात सुण'र

संकती-सी

टूकी साम्हीं जोवती थकी हरी हुगी।

स्रोत
  • सिरजक : संदीप निर्भय ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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