कदै बरसैगो

घणी चालसी

ऊंडी धार

रीता हिवड़ा में

भिदियोड़ा हियै सूं

चाल-चाल धार

भरसी आत्म रो मैराण

निपजसी जिणसूं उमाव

विगससी अंतस रा कंवल

मिटसी मानव रो ओळमो

होसी जग उलझाड़ बित्योड़ा

रीतो होसी भेद

तबै बणसी जीवण मोवणो

रोम-रोम में भरसी

मोह मतवाल

निरत होस्यां, सजसी साज

आंख्यां वारणां

यो संभव होसी काज

जदै घणो सारो

पड़सी अणमाप

नेह रो मेह।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सुरजीतसिंह भारतीय ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै