अजे धणी उज्जेण, भणजे वातां भोज री।

जुग में दाता जेण, मरै कीरत, मोतिया॥

पिंड में मोटा पाप, पथ वहतां बाथां पड़ै।

अळगा रहिये आप, मैलां मिनखां, मोतिया॥

रात दिवस हिक राम, पढिये जो आठूं पहर।

तारे कुटम तमाम, मिटै चौरासी, मोतिया॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : रायसिंघ सांदू ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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