रात ढळी, परभाती गाती नवीं जिंदगी आवै है
जाग जाग माटी रा माटी! माटी थनै जगावै है
सूत्यो मत रै अजाण, बैठ्यो होय जा किसाण
काळी रात गई
धरती सूं धणियाप ऊठग्यो ठाकर राजा राणी रो
थारै सागै हळ जोतैला हमैं पूत ठुकराणी रो
जुग पसवाडो फेर लियो है, भाग जागियो ढाणी रो
नाडा नाडिया रै पार, लाली छाई है अपार
हेलो मार रही, सूतो मत...
मंझ ऊनाळै थूं तपियो नै धणी कियो महला आराम
थारै खून पसीनै सूं वारै हाथां में हंसिया जाम
मिनख छोड कूतरडा पाळ्या जद धणिया सूं रूठ्यो राम
सूता रैया सरदार, भोगै सोई भरतार
धरती छोड चली सूतो मत...
देख! गढां सू लटका करती लिछमी छमछम आवै है
अेक-अेक कर जोर-जुलम रा दिवला बुझता जावै है
मारग में बारोठ्या बैठा लिछमी लूटी चावै है
करसा! होस संभाळ। आती लिछमी रुखाळ
लूटता जेझ नही सूतो मत...
बंध बंधग्या नहरां खुदगी, खेत नही तिरसा रैसी
थूं धरती पर पटक पसीनो, बा ढेरां मोती देसी
जे भण-गुण हुसियार होय थूं, बोरो लूट नहीं लेसी
आई आई बहार। उजडी जिंदगी संवार
है बैळा बीत रही
सूतो मत रै अजाण, बैठ्यो होय जा किसाण
काळी रात गई।