अंधेरां सूं भर्योड़ी,
मांझल रातां में,
माचा सूं उठ,
बो बीड़ी रो कश न लगावतो
खैनी री चूटी न दाबतो
बो सोचतो,
दिनुगै री मजूरी बारै,
भाई री फीस बारै, बै’ण रा ब्याव बारै
आडो होय, नींद री सो’च
बो फकत नींद रो नाटक करतो हो।