म्हे मुरधर माटी रा माणस, हियै हेत रो रस बरसै।

लाड कोड आदर सूं राखां, देख पावणां मन सरसै।

आवो म्हारा सजन स्नेही, आंगणियै पगल्या मांडो।

साम्हा जाय बधावां थांनै, दरसण नै नैणां तरसै॥

मुखमल बाळू बणी बिछावण, ऊंचो धोरो बाळसियो।

डगळ रेत रो बणियो चंदण, बणी हथाळी ओरसियो।

बीच लिलाड़ां घणी सोवणी, चिरचै मुरधर री माटी।

बैठ तीसळै माटी माथै, घणैं चाव सूं मनबसियो॥

घणा सांतरा मीठा लागै, मोटा भोभरिया रोटा।

दही जांवणी भरी घणै री, पियां दूध भरिया लोटा।

घी सूं गचगच बण्यो चूरमो, गुड़ सूं मीठो घणो स्वाद।

मन सूं बैठ जिमावै मायड़, जीमूं भाग घणां मोटा॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : संतोष कुमार पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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